shayari in hindi No Further a Mystery

दहलीज हूँ... दरवाजा हूँ... दीवार नहीं हूँ।

खरीद लाये थे कुछ सवालों का जवाब ढूढ़ने।

जहाँ तक रास्माता मालूम था हमसफर चलते गए,

जो सूख जाये दरिया तो फिर प्यास भी न रहे,

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वो आँखें कितनी क़ातिल हैं वो चेहरा कैसा लगता है।

उजालों में चिरागों की अहमियत नहीं होती।

जो मेरा हो नहीं पाया, वो तेरा हो नहीं सकता।

सुना है कि महफ़िल में वो बेनकाब आते हैं।

चेहरा तेरा चाँद का टुकड़ा सारे जहाँ से प्यारा है।

हुजूर लाज़िमी है महफिलों में बवाल होना,

जर्रे-जर्रे में वो है और कतरे-कतरे में तुम।

कि पता पूछ रहा हूँ मेरे सपने कहाँ मिलेंगे?

मगर उसका बस नहीं चलता मेरी वफ़ा के सामने।

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